Thursday, August 22, 2019

A beautifully constructed verse on 
Lambodara 
by Sri Adi Sankara

(Picked from सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसङ्ग्रहः, Sloka 3)

यदालम्बो दरं हन्ति सतां प्रत्यूहसम्भवम् ।
तदालम्बे दयालम्बं लम्बोदरपदाम्बुजम् ॥
yadalambo daram hanti satam pratyuhasambhavam
tadalambe dayalambam lambodarapadambujam

*Tr. by Pt. Ramasvarup Sharma
अन्वय और पदार्थ:-
यदालम्बः = जिनकी शरण लेना; सतां = सत्पुरुषों के; प्रत्यूहसंभवं = विघ्नों से उत्पन्न हुए; दरं = भय को; हन्ति = नष्ट करता है ; तत् = उन; दयालम्बं = दया के आधार; लम्बोदरपदाम्बुजं = गणपति के चरण्कमलों का; आलम्बे = आश्रय लेता हूं ॥
भावार्थ:-
जिनकी शरण लेने से सत्पुरुषों को किसी भी विघ्न के भय की बाधा नहीं होती, उन भक्तों पर दया करनेवाले श्रीगणपति के चरण्कमलों की मैं शरण लेता हूं ॥

Explained by Svami Paramarthananda:
lambodarapadambujamahamalambe. sadalambe should be split as sat alambe. Alambe is the verb. I resort to. I surrender to. 

*Courtesy: Sarva-vedanta-siddhanta-sara-sangrahah, Pt. Ramasvarupa Sharma, Muradabad, Vikrama 1978, p. 2.

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